सिलसिले हादसों के ध्यान में रख उम्र-भर ख़ुद को इम्तिहान में रख माँग भरते हैं जो सलीबों की उन फ़रिश्तों को आसमान में रख जाने किस मोड़ से गुज़रना हो अजनबी रास्ते गुमान में रख ज़िंदगी के बहुत क़रीब न जा फ़ासला कुछ तो अपने ध्यान में रख बे-हिसों पर भी जो गराँ गुज़रीं ऐसे जुमलों को दास्तान में रख आख़िरी तीर की तरह ख़ुद को खींच कर वक़्त की कमान में रख जिस्म एहसास के चटख़ जाएँ ऐसे बुत काँच की दुकान में रख पी के कुछ तजरबों का ज़हर 'अकमल' मुख़्तलिफ़ ज़ाइक़े ज़बान में रख