सीमाब जल गया तो उसे गर्द बोलिए आशिक़ फ़ना हुआ तो उसे मर्द बोलिए शर्बत कूँ ख़ून-ए-दिल के पियो ज़हर का सा घूँट ऐसा तबीब काँ है जिसे दर्द बोलिए है क्या किताब-ए-मतला-ए-अनवार रुख़ तिरा सूरज कूँ जिस का यक वर्क़-ए-ज़र्द बोलिए जियूँ बू हुए हैं महव हर यक रंग-ए-गुल में हम ऐ बुलबुलो सदा-ए-अनल-वर्द बोलिए अलबत्ता होवे मतला-ए-दीवान आफ़्ताब तुझ हुस्न की सिफ़त में अगर फ़र्द बोलिए बाज़ी है जान हिज्र है हार और विसाल जीत ग़म है बिसात-ए-दिल कूँ मिरे नर्द बोलिए है आग आशिक़ों का दम-ए-सर्द ऐ 'सिराज' और आग की लपट कूँ दम-ए-सर्द बोलिए