सीना-कूबी कर चुके ग़म कर चुके जीते-जी हम अपना मातम कर चुके देखिए मिलते हैं किस दिन यार से ईद भी कर लें मोहर्रम कर चुके ध्यान उन आँखों का जाने का नहीं ये हिरन पाले हुए रम कर चुके दिल लगा कर दुख उठाए बे-शुमार दम-शुमारी भी कोई दम कर चुके अब तो ज़ुल्फ़ों को न रक्खो फ़र्द फ़र्द दफ़्तर-ए-आलम को बरहम कर चुके वाइ'ज़ो जो चाहो फ़रमाओ हमें बैअ'त-ए-पीर-ए-मुग़ाँ हम कर चुके 'बहर' मुस्तग़नी हैं फ़िक्र-ए-शे'र से गौहर-ए-मा'नी फ़राहम कर चुके