सीने पे हाथ रक्खे था और रंग ज़र्द था कल शब को क्या 'शफ़ीक़' तिरे दिल में दर्द था फ़ुर्क़त में पूछते हो मिरा रंग ज़र्द था कुछ दिल पे मुनहसिर नहीं रग रग में दर्द था उन से कहूँगा दिल को मिरे आप देख लें है जिस जगह निशान यहाँ पहले दर्द था तड़पा तो थोड़ा मिल गई लज़्ज़त बहुत मुझे कल शब को मीठा मीठा मिरे दिल में दर्द था जा कर लहद में चैन से सोया में हश्र तक तकलीफ़-ए-मर्ग से मिरी रग रग में दर्द था अब शब का लोटना न तड़पना न आह-ए-सर्द उस दिल को मौत आ गई जिस दिल में दर्द था नावक-फ़गन के सदक़े में ईज़ा से बच गए उस जा पे तीर मारा जहाँ दिल में दर्द था मर कर 'शफ़ीक़' हिज्र की ईज़ा यूँही रही महशर में मैं उठा मिरे पहलू में दर्द था