सिर्फ़ ज़िंदा ही नहीं होश सँभाले हुए हैं आप को दश्त में या'नी अभी हफ़्ते हुए हैं कौन चाहेगा दरख़्त उस के समर-बार न हों तू बने इस लिए हम ख़ुद को मिटाए हुए हैं ये जो बच्चे हैं फ़क़त झूला नहीं झूल रहे शाख़ पे फूल की मानिंद ये लटके हुए हैं इन दरख़्तों के फ़वाएद का तुम्हें इल्म नहीं उन को मत काटो ये बाबा के लगाए हुए हैं मैं बहुत ख़ुश था मुझे उस ने बुलाया है 'अज़ीम' पर यहाँ जितने हैं सब उस के बुलाए हुए हैं