सिर्फ़ पुरखों के हवालों से नहीं चलता है काम माँगे के उजालों से नहीं चलता है बाज़ औक़ात अँधेरों की तलब होती है काम हर-वक़्त उजालों से नहीं चलता है इश्क़ के बीच में तू अक़्ल कहाँ ले आया यार बिज़नेस ये दलालों से नहीं चलता है भाई-'शादाब' सुनो शेर-ओ-सुख़न का दफ़्तर सिर्फ़ महबूब के गालों से नहीं चलता है