सितम का हाथ न रोका मगर बुरा तो कहा जो ज़ेर-ए-लब सभी कहते थे बरमला तो कहा तमाम-शहर था मुंकिर तिरे तअ'ल्लुक़ से ग़रीब-ए-शहर तुझे हम ने आश्ना तो कहा पिघल रही है तग़ाफ़ुल की बर्फ़ अब शायद कि मुस्कुरा के मुझे यार बेवफ़ा तो कहा वफ़ा का क़हत है इतना कि अब सर-ए-मक़्तल मैं इस पे ख़ुश हूँ कि यारों ने मर्हबा तो कहा होई न सीना-सिपर गो हिमायत-ए-हक़ में जो मिस्ल-ए-तेग़ था वो हर्फ़-ए-हक़-नुमा तो कहा