सितम का रुख़ अयाँ होते हुए भी हैं क्यों हम चुप ज़बाँ होते हुए भी शजर की टहनियाँ बे-बर्ग क्यों हैं चमन का बाग़बाँ होते हुए भी बता ऐ नाख़ुदा क्यों डूबती कश्ती ये चप्पू बादबाँ होते हुए भी वो भी है अपने बेटों की मुलाज़िम नहीं है माँ वो माँ होते हुए भी नज़र वाले सभी कुछ देख लेंगे चराग़ों का धुआँ होते हुए भी