सितम करो न करो इख़्तियार बाक़ी है जो हम नहीं तो हमारा मज़ार बाक़ी है गई बहार मगर अपनी बे-ख़ुदी है वही समझ रहा हूँ कि अब तक बहार बाक़ी है हज़ार मरहला-ए-इंतिज़ार तय भी हुए हज़ार मरहला-ए-इंतिज़ार बाक़ी है शिकस्त-ए-तौबा है ऐसी सवाब में दाख़िल अभी से तौबा 'मुबारक' बहार बाक़ी है