सितम से गो ये तिरे कुश्ता-ए-वफ़ा न रहा रहे जहान में तो दैर में रहा न रहा कब उस का नाम लिए ग़श न आ गया मुझ को दिल-ए-सितम-ज़दा किस वक़्त उस में जा न रहा मिलाना आँख का हर-दम फ़रेब था देखा फिर एक दम में वो बे-दीद आश्ना न रहा मूए तो हम पे दिल पर को ख़ूब ख़ाली कर हज़ार शुक्र कसो से हमें गिला न रहा उधर खुली मिरी छाती इधर नमक छिड़का जराहत उस को दिखाने का अब मज़ा न रहा हुआ हूँ तंग बहुत कोई दिन में सिन लीजो कि जी से हाथ उठा कर वो उठ गया न रहा सितम का उस के बहुत मैं नज़ार हूँ मम्नून जिगर तमाम हुआ ख़ून-ओ-दिल बजा न रहा अगरचे रह गए थे उस्तुख़्वान-ओ-पोस्त वले लगाई ऐसी कि तस्मा भी फिर लगा न रहा हमीयत उस के तईं कहते हैं जो 'मीर' में थी गया जहाँ से पे तेरी गली मैं आ न रहा