सितम सिखलाएगा रस्म-ए-वफ़ा ऐसे नहीं होता सनम दिखलाएँगे राह-ए-ख़ुदा ऐसे नहीं होता गिनो सब हसरतें जो ख़ूँ हुई हैं तन के मक़्तल में मिरे क़ातिल हिसाब-ए-ख़ूँ-बहा ऐसे नहीं होता जहान-ए-दिल में काम आती हैं तदबीरें न ताज़ीरें यहाँ पैमान-ए-तस्लीम-ओ-रज़ा ऐसे नहीं होता हर इक शब हर घड़ी गुज़रे क़यामत यूँ तो होता है मगर हर सुब्ह हो रोज़-ए-जज़ा ऐसे नहीं होता रवाँ है नब्ज़-ए-दौराँ गर्दिशों में आसमाँ सारे जो तुम कहते हो सब कुछ हो चुका ऐसे नहीं होता