सितमगरों का तरीक़-ए-जफ़ा नहीं जाता कि क़त्ल करना हो जिस को कहा नहीं जाता ये कम है क्या कि मिरे पास बैठा रहता है वो जब तलक मिरे दिल को दुखा नहीं जाता तुम्हें तो शहर के आदाब तक नहीं आते ज़ियादा कुछ यहाँ पूछा-गुछा नहीं जाता बड़े अज़ाब में हूँ मुझ को जान भी है अज़ीज़ सितम को देख के चुप भी रहा नहीं जाता भरम सराब-ए-तमन्ना का क्या खुला मुझ पर अब एक गाम भी मुझ से चला नहीं जाता अजीब लोग हैं दिल में ख़ुदा से मुंकिर हैं मगर ज़बान से ज़िक्र-ए-ख़ुदा नहीं जाता उड़ा के ख़ाक बहुत मैं ने देख ली ऐ 'ज़ेब' वहाँ तलक तो कोई रास्ता नहीं जाता