सितारे हार चुकी थी सभी जुआरी रात बस एक चाँद बचा था सो वो भी हारी रात बताओ कैसे कहाँ तुम ने कल गुज़ारी रात उठाई सूद पे या क़र्ज़ पे उतारी रात नहीं बुलाई नहीं हम ने ख़ुद-बख़ुद आई यहाँ न आती तो जाती कहाँ बेचारी रात उतारा टाँग दिया रेनकोट खूँटी पर फिर उस से रिसती रही बूँद बूँद सारी रात यही हिसाब है अपनी भी ज़िंदगी का दोस्त नक़्द में दिन का किया सौदा और उधारी रात हमें कफ़न नज़र आने लगे सितारों पर जो बचपने में सितारों की थी पिटारी रात