सियहकार थे बा-सफ़ा हो गए हम तिरे इश्क़ में क्या से क्या हो गए हम न जाना कि शौक़ और भड़केगा मेरा वो समझे कि उस से जुदा हो गए हम दम-ए-वापसीं आए पुर्सिश को नाहक़ बस अब जाओ तुम से ख़फ़ा हो गए हम हुए मह्व किस की तमन्ना में ऐसे कि मुस्तग़नी-ए-मा-सिवा हो गए हम उन्हें रंज अब क्यूँ हुआ हम तो ख़ुश हैं कि मर कर शहीद-ए-वफ़ा हो गए हम जब उन से अदब ने न कुछ मुँह से माँगा तो इक पैकर-ए-इल्तिजा हो गए हम तिरी फ़िक्र का मुब्तिला हो गया दिल मगर क़ैद-ए-ग़म से रिहा हो गए हम फ़ना हो के राह-ए-मोहब्बत में 'हसरत' सज़ा-वार-ए-ख़ुल्द-ए-बक़ा हो गए हम