सोच के गुम्बद में उभरी टूटती यादों की गूँज मेरी आहट सुन के जागी सैकड़ों क़दमों की गूँज आँख में बिखरा हुआ है जागते ख़्वाबों का रंग कान में सिमटी हुई है भागते सायों की गूँज जाने क्या क्या दाएरे बनते हैं मेरे ज़ेहन में काँप उठता हूँ मैं सुन कर टूटते शीशों की गूँज रंग में डूबा हुआ है क़र्या-ए-चश्म-ए-ख़्याल बाम-ओ-दर से फूटती है ख़ुशनुमा चेहरों की गूँज जाते जाते आज 'अमजद' पाँव पत्थर हो गए हाथ पर मेरे गिरी जब नर्गिसी आँखों की गूँज