सोचा है उस को जब भी तो ये मन सँवर गया फिर जा सका न ज़ेहन से मुझ में उतर गया उस को ख़बर नहीं है जो मुझ पर गुज़र गई आईना जैसे टूट के यकसर बिखर गया मैं चाहूँ उस को भूलना कैसे भुलाऊँ मैं जादू था कोई जिस का असर मुझ पे कर गया कैसा अजीब शख़्स है मुझ से मिला तो वो ख़ुश्बू मिसाल सारे बदन में बिखर गया मैं आज भी रही हूँ 'मुनव्वर' इक अहद पर सौदाई मेरा अहद है लेकिन मुकर गया