सोचता हूँ कि वो कैसा होगा आईना होगा कि चेहरा होगा जब खुली होती तिरे दोश पे ज़ुल्फ़ अब्र भी टूट के बरसा होगा जिस के जल्वों की कोई हद ही नहीं मैं ने कितना उसे चाहा होगा लोग फ़िरदौस जिसे कहते हैं इस ज़मीं का कोई टुकड़ा होगा जाम क्यों हाथ से गिर जाता है मय-कदे में कोई प्यासा होगा महफ़िलें करती हैं ख़ुद उस का तवाफ़ कौन कहता है वो तन्हा होगा उस की महफ़िल में चले हो तो 'ज़िया' दीदा-ओ-दिल पे भी पहरा होगा