सोचता हूँ यहाँ किस से है शनासाई मिरी वही वीराँ सा मकाँ है वही तन्हाई मिरी जिस की ज़ुल्फ़ों में लगाया है मोहब्बत का गुलाब काग़ज़ी फूलों से करता है पज़ीराई मिरी इस दरीचे में नहीं देखने वाला कोई वो तमाशा हूँ कि है ख़ल्क़ तमाशाई मिरी बंद-ए-ग़म टूट के अशआ'र में बह निकला है क़र्ये क़र्ये में हुई जाती है रुस्वाई मिरी दिल के फ़ानूस में जल उठती हैं शमएँ 'फ़ाख़िर' दर्द आता है जो करने की पज़ीराई मिरी