सोचते रहने से क्या क़िस्मत का लिक्खा जाएगा जो भी होना था हुआ जो होगा देखा जाएगा शहर की सरहद तलक पहुँचा के सब रुख़्सत हुए अब यहाँ से बस मिरे हम-राह सहरा जाएगा अब कोई दीवार उस के सामने रुकती नहीं सैल-ए-गिर्या अब मिरे रोके न रोका जाएगा क्या मिरी आँखों से दुनिया ख़ुद को देखेगी कभी क्या कभी मेरी तरह इक रोज़ सोचा जाएगा जान की बाज़ी लगा देनी है 'फ़र्रुख़' अब की बार तब कहीं जा कर ये आए दिन का झगड़ा जाएगा