सोए हुए बदन सर-ए-महशर उठाइए ये क्या कि बार-ए-उम्र मुकर्रर उठाइए आँखों में खींच लीजिए अक्स-ए-जमाल-ए-यार इक कूज़ा-ए-अतश में समुंदर उठाइए दिल संग है तो संग को नमनाक कीजिए इस नम से फिर ख़मीर-ए-गुल-ए-तर उठाइए आँखें बिछाए रखिए सर-ए-राह-ए-इंतिज़ार पलकों पे नाज़-ओ-ग़म्ज़ा-ए-दिलबर उठाइए जब मस्लहत हो बै'अत-ए-शब-ज़ाद पे मुसिर कोई चराग़ बर-सर-ए-सरसर उठाइए दुनिया है इक उरूस हज़ार आश्ना 'मुहिब' अब हजला-ए-उरूस से बिस्तर उठाइए