सोज़ आवाज़ में लहजे में खनक है साक़ी इश्क़ का तेरे यक़ीं तो नहीं शक है साक़ी मैं ने कब तुझ से कहा है मुझे शक है साक़ी तेरे माथे पे सितारों की चमक है साक़ी क्या तिरी शोख़ी-ए-गुफ़्तार की तशरीह करूँ कितनी शीरीनी है और कैसा नमक है साक़ी इश्क़ के सोज़ ने नग़्मात को गर्मी बख़्शी अब तिरे साज़ में शो'लों की लपक है साक़ी मेरे साँसों में जो बस जाए तो क्या उस का इलाज तू नहीं पास मगर तेरी महक है साक़ी मैं बहक जाऊँ तो ये मेरी तुनुक-ज़र्फ़ी है और अगर नश्शा न हो किस की हतक है साक़ी दिल-ए-'एहसास' में जो रूह-ए-तजल्ली है निहाँ चाँद तारों में कहाँ उस की झलक है साक़ी