सोज़ से साज़ किया चाहिए अब नय से आवाज़ किया चाहिए अब खा के तीर-ए-निगह-ए-नाज़ उस को क़द्र-अंदाज़ किया चाहिए अब जिस में जी जिस्म में आए ऐ जाँ हाँ वो एजाज़ किया चाहिए अब दिल में आता है तिरे ग़म को यार महरम-ए-राज़ किया चाहिए अब कान तक उस के तो पहुँचे यकबार ऐसी आवाज़ किया चाहिए अब हुस्न का वस्फ़ तिरे सूरत-ए-ख़त ख़ामा-पर्वाज़ किया चाहिए अब रोग़न-ए-क़ाज़ मले वस्फ़-ए-नाज़ ताज़ा पर्दाज़ किया चाहिए अब ता न हो ताइर-ए-जाँ सैद कहीं चश्म-ए-दिल-बाज़ किया चाहिए अब ताइर-ए-फ़िक्र को सुस्ती से 'वक़ार' तेज़ पर्वाज़ किया चाहिए अब