सोज़-ए-दरूँ ने राह को आसाँ बना दिया जब आग में गिरे तो गुलिस्ताँ बना दिया कुछ लोग अपनी रौ में सहर-ख़ेज़ हो गए ख़ुश-पोश ने हरीस-ए-गरेबाँ बना दिया इस को अदा-ए-हुस्न कि हुस्न-ए-अदा कहूँ उस शोख़ ने सितम को भी एहसाँ बना दिया साकिन थी मौज ज़ुल्फ़ के बहर-ए-सियाह में बाद-ए-सबा ने छेड़ के तूफ़ाँ बना दिया दुनिया-ए-तंग-दिल ने मोहब्बत के आस-पास दीवार वो उठाई कि ज़िंदाँ बना दिया दिल की कली खिला दी ग़म-ए-ताज़ा-कार ने मौज-ए-नफ़स को बाद-ए-बहाराँ बना दिया ऐ रहरव-ए-तजस्सुस-ए-हल ख़त्म है सफ़र दुश्वारियों को वक़्त ने आसाँ बना दिया दीवानगी-ए-इश्क़ का 'मानी' पे है करम आवारा-गर्द-ए-कू-ए-निगाराँ बना दिया