सोज़-ए-दिल भी नहीं सुकूँ भी है By Ghazal << तिरी निगह से इसे भी गुमाँ... शम-ए-हक़ शोबदा-ए-हर्फ़ दि... >> सोज़-ए-दिल भी नहीं सुकूँ भी है ज़िंदगानी वबाल यूँ भी है तिरी ख़्वाहिश और इस क़दर ख़्वाहिश वज्ह-ए-हासिल सही जुनूँ भी है ख़ुश भी है इल्तिफ़ात-ए-दोस्त से दिल ग़ैरत-ए-इश्क़ सर-निगूँ भी है जल के बुझ भी गई 'ज़िया' अक्सर आग सीने में जूँ की तूँ भी है Share on: