सोज़-ए-दुआ से साज़-ए-असर कौन ले गया इक संग-ए-दर से निस्बत-ए-सर कौन ले गया हर शय है ना-तमाम ये एहसास क्यूँ है आज हर ऐब से जवाज़-ए-हुनर कौन ले गया किस ने मिरी निगाह से पर्दे उठा दिए इक रंज-ए-आगही कि इधर कौन ले गया अर्सा हुआ के पाँव के नीचे ज़मीं नहीं वो नक़्श-ए-पा वो राहगुज़र कौन ले गया मेरे सफ़ीने मेरे लहू में नहा गए मेरे सराब के वो भँवर कौन ले गया ताख़ीर-ए-वक़्त-ए-दीद तिरी बरहमी का डर कितना हसीन डर था वो डर कौन ले गया हैराँ है अक़्ल 'शाज़' कि वहशत किधर गई बस्ती उदास है कि खंडर कौन ले गया