सोते हैं हम ज़मीं पर क्या ख़ाक ज़िंदगी है माटी में सन रहे हैं नापाक ज़िंदगी है ग़ैर-अज़-लिबास-ए-ज़ाहिर सूरत न पकड़े मअनी तस्वीर के वरक़ पर पोशाक ज़िंदगी है सर काट कर न मेरा फ़ितराक से लगावे समझे अगर वो उस की फ़ितराक ज़िंदगी है क्यूँ-कर करे न हर-दम क़त्-ए-मनाज़िल-ए-उम्र तेग़-ए-ज़बाँ से अपनी चालाक ज़िंदगी है जीते हैं देख कर हम ज़ुल्फ़-ए-सियह को उस की अफ़यूनियों की जैसे तिरयाक ज़िंदगी है दे वस्ल का तू व'अदा झूटा उन्हों को जा कर इस बात से जिन्हों की इम्लाक ज़िंदगी है मअनी नियाज़ के इक निकलें हैं बस-कि इस में अलहम्द में हमारी इय्याक ज़िंदगी है गर नाक हो न मुँह पर क्या लुत्फ़ ज़िंदगी का इंसान के बदन में ये नाक ज़िंदगी है दो दिन में आ रहे है ख़त का जवाब वाँ से ऐ 'मुसहफ़ी' हमारी ये डाक ज़िंदगी है