वफ़ाओं के इरादे वुसअ'त-ए-मंज़िल में रहते हैं पस-ओ-पेश-ए-सितम पेश-ओ-पस-ए-महमिल में रहते हैं नुक़ूश-ए-रह-रव-ए-मंज़िल रह-ए-मंज़िल में रहते हैं चकोरों के निशान-ए-ग़म मह-ए-कामिल में रहते हैं ग़म-ए-इश्क़-ए-हक़ीक़ी बे-असर हो जाए ना-मुम्किन नुमायाँ लग़्ज़िश-ओ-रा'शा कफ़-ए-क़ातिल में रहते हैं जो अरमाँ लब पे आ के मोजिब-ए-क़त्ल-ए-ग़रीबाँ हैं वही अरमान पोशीदा दिल-ए-क़ातिल में रहते हैं हज़ारों कश्तियाँ उस पार हो जाती हैं साहिल के हमारे वास्ते तूफ़ाँ छुपे साहिल में रहते हैं हमेशा ज़िंदगी कटती रही तारीक रातों में न जाने ज्वार-भाटे क्यूँ हमारे दिल में रहते हैं ज़माना के हवादिस से न डर हरगिज़ मुक़ाबिल आ जो अहल-ए-दिल हैं दुनिया में वही मुश्किल में रहते हैं मय-ए-रंगीं सुरूद-ए-शोख़ रक़्स-ए-दिल-रुबा शब को सहर को 'सोज़' फ़ुर्क़त के निशाँ महफ़िल में रहते हैं