सुब्ह-ए-हसीं लिखूँ कि जवाँ शाम क्या लिखूँ ऐ ज़िंदगी बता कि तिरा नाम क्या लिखूँ मुद्दत से सोचता हूँ लिखूँ कोई ख़त तुझे फिर ये भी सोचता हूँ कि पैग़ाम क्या लिखूँ इस दिल की धड़कनों पे तिरे नाम के सिवा तू ही बता कि और कोई नाम क्या लिखूँ बे-नाम चाहतों का सफ़र तो नज़र में है हैराँ हूँ इस तलाश का अंजाम क्या लिखूँ तेरे बग़ैर क्या है मिरी ज़िंदगी का हाल कैसे हैं मेरे घर के दर-ओ-बाम क्या लिखूँ कुछ तो बता 'रफ़ी' कि इस ज़िंदगी को मैं चाहत लिखूँ कि चाहत-ए-नाकाम क्या लिखूँ