सुब्ह मैं सौ कर उठा खाया पिया कल की तरह ज़िंदगी प्यारी थी मुझ को जी लिया कल की तरह जो मिला हँस कर मिले उस से ख़ुदा-हाफ़िज़ कहा आज भी जारी रही मश्क़-ए-रिया कल की तरह हम ने अपने जी में ठानी और ये कहते हुए जो न करना था वही सब कर लिया कल की तरह आज भी कहते हैं मुझ को लोग अच्छा आदमी आज भी बन कर रहा हूँ बहरूपिया कल की तरह ख़ुद से मिलने के लिए तन्हाई कितनी चाहिए आज भी पाया न मैं ने तख़लिया कल की तरह पीर रूमी आज फिर निकले हैं किस की खोज में अपने हाथों में लिए जलता दिया कल की तरह