सुब्ह को आए हो निकले शाम के जाओ भी अब तुम मिरे किस काम के हाथा-पाई से यही मतलब भी था कोई मुँह चूमे कलाई थाम के तुम अगर चाहो तो कुछ मुश्किल नहीं ढंग सौ हैं नामा-ओ-पैग़ाम के छेड़ वाइज़ हर घड़ी अच्छी नहीं रिंद भी हैं एक अपने नाम के क़हर ढाएगी असीरों की तड़प और भी उलझेंगे हल्क़े दाम के मोहतसिब चुन लेने दे इक इक मुझे दिल के टुकड़े हैं ये टुकड़े जाम के लाखों धड़के इब्तिदा-ए-इश्क़ में ध्यान हैं आग़ाज़ में अंजाम के मय का फ़तवा तो सही क़ाज़ी से लूँ टोक कर रस्ते में दामन थाम के दूर दौर-ए-मोहतसिब है आज-कल अब कहाँ वो दौर-दौरे जाम के नाम जब उस का ज़बाँ पर आ गया रह गया नासेह कलेजा थाम के दूर से नाले मिरे सुन कर कहा आ गए दुश्मन मिरे आराम के हाए वो अब प्यार की बातें कहाँ अब तो लाले हैं मुझे दुश्नाम के वो लगाएँ क़हक़हे सुन कर 'हफ़ीज़' आप नाले कीजिए दिल थाम के