सुब्ह-ए-नौ का ख़याल करते हैं शब-गज़ीदा कमाल करते हैं कितने ख़ुश हैं मिरी तबाही पर जो ब-ज़ाहिर मलाल करते हैं जो दिलों को नवाज़ते हैं बहुत दिल वही पाएमाल करते हैं टूट जाते हैं आइने फिर भी हम बहुत देख-भाल करते हैं सोचता हूँ कि लौट कर मुझ को राहज़न क्यों मलाल करते हैं ख़ैर मरना तो है बहुत आसाँ जीने वाले कमाल करते हैं गाँव में ही भले थे हम 'अनवर' शहर में ये ख़याल करते हैं