सुब्ह-ए-वफ़ा से हिज्र का लम्हा जुदा करो मंज़िल से गर्द, गर्द से रस्ता जुदा करो इक नक़्श हो न पाए इधर से उधर मिरा जैसा तुम्हें मिला था मैं वैसा जुदा करो शब-ज़ाद-गाँ! तुम अहल-ए-ख़बर से नहीं सो तुम! अपना मदार अपना मदीना जुदा करो याँ पय-ब-पय जो ख़्वाब खुले नै-ब-नै खुले जितना जुदा ये हो सके उतना जुदा करो मैं था कि अपने-आप में ख़ाली सा हो गया उस ने तो कह दिया मिरा हिस्सा जुदा करो