मुआ'फ़ कीजिए गुस्ताख़ियाँ हमारी हैं लबों पे आप के ये तितलियाँ हमारी हैं ये चैत का है महीना तुम्हारी याद भरा कि इन दिनों बड़ी सर-गरमियाँ हमारी हैं तुम्हारे होंटों से कुछ राब्ते हैं गहरे से तुम्हारी आँखों में दिलचस्पियाँ हमारी हैं हर एक लफ़्ज़ है फीका है बे-स्वाद सा है बहुत लज़ीज़ ये ख़ामोशियाँ हमारी हैं भरी दो-पहरी में फैला है शोर यादों का तुम्हारी अलगनी पर हिचकियाँ हमारी हैं