सुख दुख में गर्म-ओ-सर्द में सैलाब में भी हैं यादें तुम्हारी मौसम-ए-शादाब में भी हैं होने लगी शिकस्त जो हर मोड़ पर मुझे दुश्मन पता चला मिरे अहबाब में भी हैं दामन को पाक रखने के हक़ में था मैं मगर वो कह रही थी दाग़ तो महताब में भी हैं दिल्ली सुख़न-वरों का है मरकज़ मगर मियाँ उर्दू के कुछ चराग़ तो पंजाब में भी हैं रंगीन मर्तबान में ये ख़ुश नहीं तो क्या कुछ मछलियाँ उदास तो तालाब में भी हैं