सुख़न की शब लहू होती रहेगी किसी से गुफ़्तुगू होती रहेगी वो सूरज है तो हो नज़दीक-ए-जाँ भी ये ताबिश चार-सू होती रहेगी दरीदा-दामनी है बे-कली से इसी से ये रफ़ू होती रहेगी कोई ग़ुंचा सवार-ए-कहकशाँ था ख़बर ये कू-ब-कू होती रहेगी मैं अक्सर सोचता रहता हूँ कब तक ज़मीं बे-आबरू होती रहेगी समुंदर के किनारे मिल रहे हैं ये दुनिया आब-जू होती रहेगी ख़ज़ीने काएनाती कम न होंगे नमूद-ए-जुस्तुजू होती रहेगी निहाल-ए-इश्क़ अफ़्सुर्दा न होगा तमन्ना-ए-नुमू होती रहेगी न वो होगा न हम लेकिन ये दुनिया हरीस-ए-रंग-ओ-बू होती रहेगी