सुख़न में जो रवानी हो गई है ख़ुदा की मेहरबानी हो गई है जो तेरे वास्ते लिखी गई थी वही मेरी कहानी हो गई है नया इल्ज़ाम रख दो आदमी पर ये दुनिया अब पुरानी हो गई है तिरा मौसम जो आया है नज़र में ग़ज़ल कितनी सुहानी हो गई है तिरी आँखों में ढलती मुस्कुराहट हमारी ज़िंदगानी हो गई है कहाँ का दिल कहाँ का है फ़साना मोहब्बत आनी-जानी हो गई है नहीं लिखेगी 'नीलम' नाम उन का वो अब क़द्रे सियानी हो गई है