सुख़न में सहल नहीं जाँ निकाल कर रखना ये ज़िंदगी है हमारी सँभाल कर रखना खुला कि इश्क़ नहीं है कुछ और इस के सिवा रज़ा-ए-यार जो हो अपना हाल कर रखना उसी का काम है फ़र्श-ए-ज़मीं बिछा देना उसी का काम सितारे उछाल कर रखना उसी का काम है इस दुख-भरे ज़माने में मोहब्बतों से मुझे माला-माल कर रखना बस एक कैफ़ियत-ए-दिल में बोलते रहना बस एक नश्शे में ख़ुद को निहाल कर रखना बस एक क़ामत-ए-ज़ेबा के ख़्वाब में रहना बसा एक शख़्स को हद्द-ए-मिसाल कर रखना गुज़रना हुस्न की नज़्ज़ारगी से पल-भर को फिर उस को ज़ाइक़ा-ए-ला-ज़वाल कर रखना किसी के बस में नहीं था किसी के बस में नहीं बुलंदियों को सदा पाएमाल कर रखना