सुकूँ को छोड़ के ग़म बे-हिसाब लाता हूँ सुहाने ख़्वाब भी सारे ख़राब लाता हूँ जो तुम ने तोड़े पुराने थे सारे के सारे ज़रा रुको नया कोई मैं ख़्वाब लाता हूँ मकान नहर किनारे तुम्हें मुबारक हो मैं कम सही मगर आप अपना आब लाता हूँ वो बोले मुझ से मोहब्बत गुनाह थी सो मैं उन्हें लुटाने को अपने सवाब लाता हूँ कहानी मुझ को सुनाओ न और लोगों की मैं अपने वास्ते अपनी किताब लाता हूँ तुम्हारे हर गिले का हर सवाल का 'सालिम' तू मेरे दिल से गर उतरे जवाब लाता हूँ