सुकून-ए-दिल की लज़्ज़त चाहता हूँ फ़क़ीरी में ये दौलत चाहता हूँ हुकूमत की मोहब्बत दुश्मनों को मोहब्बत की हुकूमत चाहता हूँ सियासत का अंधेरा छा रहा है ज़रा नूर-ए-सदाक़त चाहता हूँ उन्हें ये पाँव फैलाना मुबारक कहीं मैं भी सुकूनत चाहता हूँ बहुत क्या चाहता हूँ आदमी से ज़रा सी आदमिय्यत चाहता हूँ गए 'नज्म' अहल-ए-दिल दुनिया से कितने बस अब मैं भी इजाज़त चाहता हूँ