सुकून कुछ तो मिला दिल का माजरा लिख कर लिफ़ाफ़ा फाड़ दिया फिर तिरा पता लिख कर समझ में ये नहीं आता ख़िताब कैसे करूँ हुरूफ़ काट दिए मैं ने बार-हा लिख कर क़लम ने टोका भी दिल की सदा ने रोका भी मगर जो उस ने कहा मैं ने दे दिया लिख कर हुजूम-ए-ग़म में ज़बाँ साथ जब न दे पाई जो हाल दिल का था मैं ने सुना दिया लिख कर अब उस की बारी है अब इख़्तियार उस का है कहीं का मैं न रहा उस को बेवफ़ा लिख कर भला सा कोई भी इक नाम उस का रख लेना पर उस के नाम को आँखों से चूमना लिख कर मैं अपनी हसरत-ए-दिल का हिसाब कैसे दूँ ये ढेर मैं ने लगाया ज़रा ज़रा लिख कर मुझे तो अपने लिए रास्ता तराशना है मैं क्या करूँगा किसी का लिखा हुआ लिख कर मिली है उस के सबब इतनी रौशनी 'शहज़ाद' बुझा दिए कई सूरज उसे दिया लिख कर