सुकूँ-पज़ीर मिरा इज़्तिराब हो न सका ये दहर वो है जहाँ इंक़लाब हो न सका हरीम-ए-नाज़ में दिल बारयाब हो न सका ये ज़र्रा हम-शरफ़-ए-आफ़्ताब हो न सका मिरी नज़र में कोई इंतिख़ाब हो न सका तिरे सिवा कोई तेरा जवाब हो न सका सरिश्त-ए-बद को बदलती नहीं है सोहबत-ए-नेक चमन में रह के भी काँटा गुलाब हो न सका मिरी नज़र थी रसा या तुम्हें था शौक़-ए-नुमूद हिजाब कर न सके या हिजाब हो न सका बहारें गुलशन-ए-दुनिया में बे-शुमार आईं जवाब-ए-अह्द-ए-रिसालत-मआब हो न सका है फ़ैज़-ए-हज़रत-ए-'बाक़र' से इत्तिबा'-ए-वहीद कि जिन के रंग का 'साक़िब' जवाब हो न सका