सुकून-ए-क़ल्ब ओ शकेब-ए-नज़र की बात करो गुज़र गई है शब-ए-ग़म सहर की बात करो दिलों का ज़िक्र ही क्या है मिलें मिलें न मिलें नज़र मिलाओ नज़र से नज़र की बात करो शगुफ़्ता हो न सकेगी फ़ज़ा-ए-अर्ज़-ओ-समा किसी की जलवा-गह-ए-बाम-ओ-दर की बात करो हरीम-ए-नाज़ की ख़ल्वत में दस्तरस है किसे नज़ारा-हा-ए-सर-ए-रह-गुज़र की बात करो बदल न जाए कहीं इल्तिफ़ात-ए-हुस्न का रंग हलावत-ए-निगह-ए-मुख़्तसर की बात करो जहान-ए-होश-ओ-ख़िरद के मुआ'मले हैं दराज़ किसी के गेसू-ए-आशुफ़्ता-सर की बात करो निगाह-ए-नाज़ है इक काएनात-ए-राज़-ओ-नियाज़ जिधर करे वो इशारा उधर की बात करो सुरूर-ए-ज़ीस्त हुआ जिस के दम-क़दम से नसीब उसी नदीम उसी हम-सफ़र की बात करो वो जिस से तल्ख़ी-ए-ज़हराब-ए-ग़म गवारा है उसी 'तबस्सुम'-ए-शीरीं-असर की बात करो