सुकूत-ए-शब में दिल-ए-दाग़-दाग़ रौशन है कि ज़ख़्म ज़ख़्म नहीं है चराग़ रौशन है अभी जुनून सलामत है मेरा जान-ए-ग़ज़ल किरन किरन है तसव्वुर दिमाग़ रौशन है अजब मजाज़-ओ-हक़ीक़त है ख़ित्ता-ए-दुनिया जहाँ पे हंस तो मैले हैं ज़ाग़ रौशन है विसाल-ए-यार के लम्हे हैं आरज़ी लेकिन मशाम-ए-जाँ में मगर सब्ज़-बाग़ रौशन है अभी है दश्त में ज़िंदा फ़िराक़-ए-लैलाई अगरचे ख़त्म फ़साना सुराग़ रौशन है ग़ज़ाल आँखें हैं ऐसी कि क्या कहूँ 'ज़ाकिर' गुलाब चेहरे पे दो दो अयाग़ रौशन है