सुलगते दाग़ दिल से धो रहे थे By Ghazal << तुम्हें पाने की हैसिय्यत ... शनासाई का सिलसिला देखती ह... >> सुलगते दाग़ दिल से धो रहे थे अधूरे ख़्वाब पूरे हो रहे थे तुम्हें वो वक़्त याद आता है जब तुम लिपट कर शाख़-ए-गुल से सो रहे थे Share on: