सुल्ह-ओ-पैकार भी हो और रिफ़ाक़त भी रहे ख़ूँ में अज्दाद की थोड़ी सी शराफ़त भी रहे ज़ेहन-ए-ख़्वाबीदा को मसरूफ़-ए-अमल रखना है क्या ज़रूरी कि इशारों में सराहत भी रहे ये तो मुमकिन है फ़क़त गोशा-ए-तन्हाई में शोर-ए-बाज़ार न हो और क़यामत भी रहे रौशनी के लिए दरकार है बे-ताबी-ए-ख़ाक चाँद लेकिन हुनर-ए-शब से इबारत भी रहे सुनते आए हैं मोहब्बत है इबादत ऐ दोस्त कभी हँस-बोल के बैठो तो इबादत भी रहे शाइ'री नग़्मागरी साअ'त-ए-हैरानी में ताज़ा-कारी हो मगर पास-ए-रिवायत भी रहे