सुन के फ़ुर्क़त चुप हुआ ऐसा कि मुर्दा हो गया पूछता है यार रो रो कर तुझे क्या हो गया देख कर चश्म-ए-सियाह-ए-माह-रू वहशत हुई चाँदनी में उस हिरन का रंग काला हो गया कर दिया अबरू ने दो टुकड़े ब-रंग-ए-जुल्फ़िक़ार एक ही तलवार में सारी का आधा हो गया क्या दिया बोसा लब-ए-शीरीं का हो कर तुर्श-रू मुँह हुआ मीठा तो क्या दिल अपना खट्टा हो गया मुँह जो उस यूसुफ़ ने फेरा हो गए बे-कार सब दीदा-ए-याक़ूब चाह-ए-आइना अंधा हो गया दिल जो तड़पा दाग़ से रौशन जहान-ए-दिल हुआ बर्क़ जब चमकी अंधेरे में उजाला हो गया 'अर्श' उस की सर्द-मेहरी ता-दम-ए-आख़िर रही दिल हुआ ठंडा न सारा जिस्म ठंडा हो गया