सुन के हर सम्त सिसकियाँ मैं ने बंद कर लीं थीं खिड़कियाँ मैं ने ये भी दस्तूर है मोहब्बत का हार कर जीती बाज़ियाँ मैं ने हाथ उठते नहीं दुआ के लिए अब जला दीं हैं अर्ज़ियाँ मैं ने हम-सफ़र वो जो हम-सफ़र ही न था और फिर कर लीं दूरियाँ मैं ने पर कतर पाई जब न ख़्वाबों के बंद ही कर दीं खिड़कियाँ मैं ने