सुन रक्खो उसे दिल का लगाना नहीं अच्छा दुनिया ये बुरी है ये ज़माना नहीं अच्छा सब लूट लिया एक नज़र देख के मुझ को ऐ दुज़्द-ए-निगह दिल का चुराना नहीं अच्छा क्यूँ झेंपते हो ग़ैरों में हाँ फिर तो कहो वो गाली ही तो थी बात बनाना नहीं अच्छा उर्यां-बदनी पर न हबाबों की पड़े आँख दरिया में मिरी जान नहाना नहीं अच्छा अफ़्सोस की सूरत न बनाओ न रुलाओ दिल पिस्ता है होंटों का चबाना नहीं अच्छा रोते हैं हँसाते हो भरी बज़्म में साहब चुप बैठे रहो ध्यान बटाना नहीं अच्छा कूचे से चले जाइए 'अख़्तर' कहीं अब और मज़मून बहुत इश्क़ का छाना नहीं अच्छा