सुना है उन के लब पर कल था ज़िक्र-ए-मुख़्तसर मेरा तसव्वुर दे रहा है तूल इसी को किस क़दर मेरा ये दिल-सोज़ी-ए-दर्द-ए-आदमिय्यत क्या क़यामत है किसी की आँख से आँसू बहें दामन हो तर मेरा तसव्वुर मय-कदे का मुश्तरक हो किस तरह नासेह? ख़िरद साग़र-शिकन तेरी जुनूँ पैमाना-गर मेरा यही आलम रहा गर शौक़ की आईना-बंदी का! तो गुम हो जाएगा जल्वों में शौक़-ए-ख़ुद-निगर मेरा ख़ुदा-रा कुछ तो नाज़-ए-सर-बुलंदी रहम कर मुझ पर तिरे बार-ए-गिराँ से अब झुका जाता है सर मेरा उलझ कर रह गई थी अक़्ल तो पर्दे के तारों में बड़ी मुश्किल से काम आया जुनून-ए-पर्दा-दर मेरा नहीं 'परवेज़' कुछ अपने ही अश्कों की नमी इस में बना है आस्तीन-ए-दोस्ताँ दामान-ए-तर मेरा