सूने सियाह शहर पे मंज़र-पज़ीर मैं आँखें क़लील होती हुई और कसीर मैं मस्जिद की सीढ़ियों पे गदागर ख़ुदा का नाम मस्जिद के बाम-ओ-दर पे अमीर ओ कबीर मैं दर-अस्ल इस जहाँ को ज़रूरत नहीं मिरी हर-चंद इस जहाँ के लिए ना-गुज़ीर मैं मैं भी यहाँ हूँ इस की शहादत में किस को लाऊँ मुश्किल ये है कि आप हूँ अपनी नज़ीर मैं मुझ तक है मेरे दुख के तसव्वुफ़ का सिलसिला इक ज़ख़्म मैं मुरीद तो इक ज़ख़्म पीर मैं हर ज़ख़्म क़ाफ़िले की गुज़रगाह मेरा दिल रू-ए-ज़मीं पे एक लहू की लकीर मैं